खुद जानिए आपको पितृदोष है या नहीं, ऐसे करें उपाय VASTUANKKIT 8789364798

 

खुद जानिए आपको पितृदोष है या नहीं, ऐसे करें उपाय, VASTU ANKKIT 8789364798

शास्त्र के अनुसार सूर्य (Surya) तथा राहू (Rahu) जिस भी भाव में बैठते हैं, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते हैं. व्यक्ति की कुण्डली (Kundali) में एक ऐसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है. इस दोष को पितृदोष (Pitra Dosh) के नाम से जाना जाता है. 

शास्त्र के अनुसार सूर्य (Surya) तथा राहू (Rahu) जिस भी भाव में बैठते हैं, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते हैं. व्यक्ति की कुण्डली (Kundali) में एक ऐसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है. इस दोष को पितृदोष (Pitra Dosh) के नाम से जाना जाता है. ज्योतिष (Jyotish) के अनुसार पितृदोष और पितृ ऋण से पीड़ित कुंडली शापित कुंडली कही जाती है. जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है. ऐसी स्थिति में जातक के सांसारिक जीवन और आध्यात्मिक उन्नति में अनेक बाधाएं उत्पन्न होती हैं.

ज्योतिष और पुराणों मे भी पितृदोष (Pitra Dosh) के संबंध में अलग-अलग धारणा है लेकिन यह तय है कि यह हमारे पूर्वजों और कुल परिवार के लोगों से जुड़ा दोष है. जब तक इस दोष का निवारण नहीं कर लिया जाए, यह दोष खत्म नहीं होता है. यह दोष एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है. यानी यदि पिता की कुंडली में पितृदोष है और उसने इसकी शांति नहीं कराई है, तो संतान की कुंडली में भी यह दोष देखा जाता है. जब परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के बाद सही तरीके से उसका अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है या जीवित अवस्था में उनकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो, तो उनकी आत्मा घर और आगामी पीढ़ी के लोगों के बीच ही भटकती है. मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है. यह कष्ट पितृदोष के रूप में जातक की कुंडली में दिखता है.



पितृ दोष के लक्षण
- विवाह ना होना या विवाह होने में बहुत समस्या होना
- वैवाहिक जीवन में कलह होना
- परीक्षा में बार-बार फेल होना
- नौकरी का ना मिलना या बार-बार नौकरी छूटना
- गर्भपात या गर्भधारण में बहुत ज्यादा समस्या
- बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना
- मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना
- अपने आप पर विश्वास ना होना या कोई निर्णय न ले पाना
- बात-बात पर क्रोध आना
- बहुत मेहनत के बावजूद व्यापर ना चलना

क्यों होता है पितृदोष?
- पूर्व जन्म में अगर माता-पिता की अवहेलना की गई हो 
- अपने दायित्वों का ठीक तरीके से पालन न किया गया हो
- अपने अधिकारों और शक्तियों का दुरुपयोग किया गया हो
- तो इसका असर जीवन पर दिखने लगता है
- व्यक्ति को जीवन में हर कदम पर असफलता मिलती है

किन योगों के होने पर पितृ-दोष होता है?
- कुंडली में राहु का प्रभाव ज्यादा हो तो इस तरह की समस्या हो जाती है
- राहु अगर कुंडली के केंद्र स्थानों या त्रिकोण में हो
- अगर राहु का सम्बन्ध सूर्य या चन्द्र से हो
- अगर राहु का सम्बन्ध शनि या बृहस्पति से हो
- राहु अगर द्वितीय या अष्टम भाव में हो

कैसे करें पितृ-दोष का निवारण?
- अमावस्या के दिन किसी निर्धन को भोजन कराएं, खीर जरूर खिलाएं
- पीपल का वृक्ष लगवाएं और उसकी देखभाल करें
- ग्रहण के समय दान अवश्य करें
- श्रीमदभगवद्गीता का नित्य प्रातः पाठ करें
- अगर मामला ज्यादा जटिल हो तो, श्रीमद्भागवद का पाठ कराएं
- अपने कर्मों को जहां तक हो सके शुद्ध रखने का प्रयास करें

सबसे खतरनाक: जब पितृदोष प्रथम स्तर पर हो. पितृदोष प्रथम स्तर पर होता है यदि सूर्य इन ग्रहों में से किसी के साथ किसी भी भाव या घर में होता है. यह सबसे खतरनाक दोष है.

मध्यम प्रभाव: पितृदोष जब द्वितीय स्तर पर हो. इस पितृदोष का संयोग तब होता है जब उपरोक्त ग्रहों में से किसी भी या सभी के साथ सूर्य की छाया होती है, तो यह दूसरे स्तर का दोष होता है. यह पितृ दोष प्रथम स्तर से भयंकर नहीं होता है लेकिन इसकी मध्यवर्ती प्रभाव होता है.

हल्का स्वभाव और प्रभाव: पितृदोष का तीसरा हल्का स्तर तब होता है जब सूर्य को शत्रु की राशि में या ऊपर के नकारात्मक ग्रहों की राशि में होता है.


पितृदोष का भयानक असर, जानिये लक्षण


के संबंध में ज्योतिष और पुराणों की अलग अलग धारणा है लेकिन यह तय है कि यह हमारे पूर्वजों और कुल परिवार के लोगों से जुड़ा दोष है। पितृदोष के कारण हमारे सांसारिक जीवन में और आध्यात्मिक साधना में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। हमारे पूर्वजों का लहू, हमारी नसों में बहता है। हमारे पूर्वज कई प्रकार के होते हैं, क्योंकि हम आज यहां जन्में हैं तो कल कहीं ओर। 
पितृ दोष के कई कारण और प्रकार होते हैं। पूर्वजों के कारण वंशजों को किसी प्रकार का कष्ट ही पितृदोष माना गया है ऐसा नहीं है और भी कई कारणों से यह दोष प्रकट होता है। इसे पितृ ऋण भी कह सकते हैं। आओ जानते हैं कि पितृदोष और ऋण क्या होता है। जानने में ही समाधान छुपा हुआ है। > ज्योतिष के अनुसार पितृ दोष और पितृ ऋण से पीड़ित कुंडली शापित कुंडली कही जाती है। ऐसे व्यक्ति अपने मातृपक्ष अर्थात माता के अतिरिक्त मामा-मामी मौसा-मौसी, नाना-नानी तथा पितृपक्ष अर्थात दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई आदि को कष्ट व दुख देता है और उनकी अवहेलना व तिरस्कार करता है। जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है। इसके अलावा भी अन्य कई स्थितियां होती है।> हालांकि इसके अलावा व्यक्ति अपने कर्मों से भी पितृदोष निर्मित कर लेता है। विद्वानों ने पितर दोष का संबंध बृहस्पति (गुरु) से बताया है। अगर गुरु ग्रह पर दो बुरे ग्रहों का असर हो तथा गुरु 4-8-12वें भाव में हो या नीच राशि में हो तथा अंशों द्वारा निर्धन हो तो यह दोष पूर्ण रूप से घटता है और यह पितर दोष पिछले पूर्वज (बाप दादा परदादा) से चला आता है, जो सात पीढ़ियों तक चलता रहता है। 
 
लाल किताब के अनुसार पितृ ऋण : पितृ ऋण कई प्रकार का होता है जैसे हमारे कर्मों का, आत्मा का, पिता का, भाई का, बहन का, मां का, पत्नी का, बेटी और बेटे का। आत्मा का ऋण को स्वयं का ऋण भी कहते हैं। जब कोई जातक अपने जातक पूर्व जन्म में धर्म विरोधी कार्य करता है तो वह इस जन्म में भी अपनी इस आदत को दोहराता है। ऐसे में उस पर यह दोष स्वत: ही निर्मित हो जाता है। धर्म विरोधी का अर्थ है कि आप भारत के प्रचीन धर्म हिन्दू धर्म के प्रति जिम्मेदार नहीं हो। पूर्व जन्म के बुरे कर्म, इस जन्म में पीछा नहीं छोड़ते। अधिकतर भारतीयों पर यह दोष विद्यमान है। स्वऋण के कारण निर्दोष होकर भी उसे सजा मिलती है। दिल का रोग और सेहत कमजोर हो जाती है। जीवन में हमेशा संघर्ष बना रहकर मानसिक तनाव से व्यक्ति त्रस्त रहता है।
 
इसी तरह हमारे पितृ धर्म को छड़ने या पूर्वजों का अपमान करने आदि से पितृ ऋण बनता है, इस ऋण का दोष आपके बच्चों पर लगता है जो आपको कष्ट देकर इसके प्रति सतर्क करते हैं। पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ-साथ संतान की ओर से कष्ट, संतानाभाव, संतान का स्वास्थ्य खराब रहने या संतान का सदैव बुरी संगति में रहने से परेशानी झेलना होती है। पितर दोष के और भी दुष्परिणाम देखे गए हैं- जैसे कई असाध्य व गंभीर प्रकार का रोग होना। पीढ़ियों से प्राप्त रोग को भुगतना या ऐसे रोग होना जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहे। पितर दोष का प्रभाव घर की स्त्रियों पर भी रहता है।
इसके अलावा मातृ ऋण से आप कर्ज में दब जाते हो और ऐसे में आपके घर की शांति भंग हो जाती है। मातृ ऋण के कारण व्यक्ति को किसी से किसी भी तरह की मदद नहीं मिलती है। जमा धन बर्बाद हो जाता है। फिजूल खर्जी को वह रोक नहीं पाता है। कर्ज उसका कभी उतरना नहीं।
दूसरी ओर बहन के ऋण से व्यापार-नौकरी कभी भी स्थायी नहीं रहती। जीवन में संघर्ष इतना बढ़ जाता है कि जीने की इच्छा खत्म हो जाती है। बहन के ऋण के कारण 48वें साल तक संकट बना रहता है। ऐसे में संकट काल में कोई भी मित्र या रिश्तेदार साथ नहीं देते भाई के ऋण से हर तरह की सफलता मिलने के बाद अचानक सब कुछ तबाह हो जाता है। 28 से 36 वर्ष की आयु के बीच तमाम तरह की तकलीफ झेलनी पड़ती है।
स्त्री के ऋण का अर्थ है कि आपने किसी स्त्री को किसी भी प्रकार से प्रताड़ित किया हो, इस जन्म में या पूर्जजन्म में तो यह ऋण निर्मित होता है। स्त्रि को धोखा देना, हत्या करना, मारपीट करना, किसी स्त्री से विवाह करके उसे प्रताड़ित कर छोड़ देना आदि कार्य करने से यह ऋण लगता है। इसके कारण व्यक्ति को कभी स्त्री और संतान सुख नसीब नहीं होता। घर में हर तरह के मांगलिक कार्य में विघ्न आता है।
 
इसके अलावा  गुरु का ऋण, शनि का ऋण, राहु और केतु का ऋण भी होता है। इसमें से शनि के ऋण उसे लगता है जो धोके से किसी का मकान, भूमि या संपत्ति आदि हड़ लेता हो, किसी की हत्या करवा देता हो या किसी निर्दोष को जबरन प्रताड़ित करता हो। ऐसे में शनिदेव उसे मृत्यु तुल्य कष्ट देते हैं और उसका परिवार बिखर जाता है।
 
राहु के ऋण के अजन्मे का ऋण कहते हैं। इस ऋण के कारण व्यक्ति मरने के बाद प्रेत बनता है। किसी संबंधी से छल करने के कारण या किसी अपने से ही बदले की भावना रखने के कारण यह ऋण उत्पन्न होता है। इसके कारण आपने सिर में गहरी चोट लग सकती है। निर्दोष होते हुए भी आप मुकदमे आदि में फंस जाते हैं। बच्चों को इससे कष्ट होता है। इसी तरह केतु के ऋण अनुसार संतान का जन्म मुश्किल से होता है और यदि हो भी जाता है तो वह हमेशा बीमार रहती है। यदि आपने किसी कुत्ते को मारा हो तो भी यह ऋण लगता है।
4. ब्रह्मा ऋण : पितृ ऋण या दोष के अलावा एक ब्रह्मा दोष भी होता है। इसे भी पितृ के अंर्तगत ही माना जा सकता है। ब्रम्हा ऋण वो ऋण है जिसे हम पर ब्रम्हा का कर्ज कहते हैं। ब्रम्हाजी और उनके पुत्रों ने हमें बनाया तो किसी भी प्रकार के भेदवाव, छुआछूत, जाति आदि में विभाजित करके नहीं बनाया लेकिन पृथ्वी पर आने के बाद हमने ब्रह्मा के कुल को जातियों में बांट दिया। अपने ही भाइयों से अलग होकर उन्हें विभाजित कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ की हमें युद्ध, हिंसा और अशांति को भोगना पड़ा और पड़ रहा है। 
धर्मान्तरण के होंगे बुरे परिणाम : वर्तमान में लालच, डर या सैंकड़ों सालों से फैलाई गई नफरत के आधार पर कुछ लोग अपना पितृ धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपना लेते हैं। इसका परिणाम वर्तमान में नहीं लेकिन बाद में भुगतना ही होगा। हालांकि देश के बहुत से क्षेत्र भुगत भी रहे हैं। धर्मान्तरण जैसे कृत्यों से  ब्रह्मा का दोष उत्पन्न होता है और फिर आपके बच्चों को इसका भुगतान करना होगा।
 
ब्रह्मा दोष हमारे पूर्वजों, हमारे कुल, कुल देवता, हमारे धर्म, हमारे वंश आदि से जुड़ा है। बहुत से लोग अपने पितृ धर्म, मातृभूमि या कुल को छोड़कर चले गए हैं। उनके पीछे यह दोष कई जन्मों तक पीछा करता रहता है। यदि कोई व्यक्ति अपने धर्म और कुल को छोड़कर गया है तो उसके कुल के अंत होने तक यह चलता रहता है, क्यों‍कि यह ऋण ब्रह्मा और उनके पुत्रों से जुड़ा हुआ है। मान्यता अनुसार ऐसे व्यक्ति का परिवार किसी न किसी दुख से हमेशा पीड़ित बान रहता है और अंत: मरने के बाद उसे प्रेत योनी मिलती है।
खास उपाय : पितृ दोष या ऋण को उतारने के तीन उपाय- देश के धर्म अनुसार कुल परंपरा का पालन करना, पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध करना और संतान उत्पन्न करके उसमें धार्मिक संस्कार डालना। प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ना, भृकुटी पर शुद्ध जल का तिलक लगाना, तेरस, चौदस, अमावस्य और पूर्णिमा के दिन गुड़-घी की धूप देना, घर के वास्तु को ठीक करना और शरीर के सभी छिद्रों को अच्छी रीति से प्रतिदिन साफ-सुधरा रखने से भी यह ऋण चुकता होता है।
खास उपाय : ब्रह्मा ऋण से मुक्ति पाने के लिए हमें घृणा, छुआछूत, जातिवाद, प्रांतवाद इत्यादि की भावना से दूर रहकर यह समझना चाहिए की भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति ब्रह्मा की संतान हैं। उसके और मेरे पूर्वज एक ही हैं जिससे में घृणा करता हूं। हिन्दू हैं तो हिन्दू ही बनकर रहें। न तो आप सवर्ण हैं और न दलित। विदेशी आंक्राताओं, अंग्रेजों और भारत के राजनीतिज्ञों ने आपको बांट दिया है। प्रत्येक भारतीय हिन्दू है।> > ब्रह्मा के पुत्र और मानस पुत्रों के बारे में आप विस्तार से पढ़ेंगे तो आपको इसका ज्ञान हो जाएगा कि हमारे पूर्वज कौन हैं। अफगानिस्तान से लेकर अरुणाचल और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हम सभी ब्रह्मा की संतानें हैं। हमारे धर्म हिन्दू ही है और हमारी धर्म किताब मात्र वेद ही है।
(1) पितरों का विधिवत् संस्कार, श्राद्ध न होना।
(2) पितरों की विस्मृति या अपमान।

(3) धर्म विरुद्ध आचरण।

(4) वृक्ष, फल लदे, पीपल, वट इत्यादि कटवाना।

(5) नाग की हत्या करना, कराना या उसकी मृत्यु का कारण बनना।

(6) गौहत्या या गौ का अपमान करना।

(7) नदी, कूप, तड़ाग या पवित्र स्थान पर मल-मूत्र विसर्जन।

(8) कुल देवता, देवी, इत्यादि की विस्मृति या अपमान।
(9) पवि‍त्र स्थल पर गलत कार्य करना।

(10) पूर्णिमा, अमावस्या या पवित्र तिथि को संभोग करना।

(11) पूज्य स्त्री के साथ संबंध बनाना।

(12) निचले कुल में विवाह संबंध करना।

(13) पराई स्त्रियों से संबंध बनाना।

(14) गर्भपात करना या किसी जीव की हत्या करना।

(15) कुल की स्त्रियों का अमर्यादित होना।

(16) पूज्य व्यक्तियों का अपमान करना इत्यादि कई कारण हैं।
पितृ दोष से हानि-

(1) संतान न होना, संतान हो तो विकलांग, मंदबुद्धि या चरित्रहीन अथवा होकर मर जाना।

(2) नौकरी, व्यवसाय में हानि, बरकत न हो।

(3) परिवार में ऐक्य न हो, अशांति हो।

(4) घर के सदस्यों में एक या अधिक लोगों का अस्वस्थ होना, इलाज करवाने पर ठीक न होना।

(5) घर के युवक-यु‍वतियों का विवाह न होना या विवाह में विलंब होना।
(6) अपनों के द्वारा धोखा दिया जाना।

(7) दुर्घटनादि होना, उनकी पुनरावृ‍त्ति होना।

(8) मांगलिक कार्यों में विघ्न होना।

(9) परिवार के सदस्यों में किसी को प्रेत-बाधा होना इ‍त्यादि।

पितृ दोष निवारण के कुछ सरल उपाय यहां दिए जा रहे हैं।

* श्राद्ध पक्ष में तर्पण, श्राद्ध इत्यादि करें।

* पंचमी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा को पितरों के निमित्त दान इत्यादि करें।


* घर में भगवत गीता पाठ विशेषकर 11वें अध्याय का पाठ नित्य करें।

* पीपल की पूजा, उसमें मीठा जल तथा तेल का दीपक नित्य लगाएं। परिक्रमा करें।

* हनुमान बाहुक का पाठ, रुद्राभिषेक, देवी पाठ नित्य करें।
*
श्रीमद् भागवत के मूल पाठ घर में श्राद्धपक्ष में या सुविधानुसार करवाएं।

*
गाय को हरा चारा, पक्षियों को सप्त धान्य, कुत्तों को रोटी, चींटियों को चारा नित्य डालें।

* ब्राह्मण-कन्या भोज करवाते रहें।






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