Shardiya Navratri 2020 : घोड़े पर आयेंगी मां, भैंस पर होंगी विदा, जानें क्यों घोड़े पर आना अशुभ संकेत VASTUANKKIT 8789364798

Shardiya Navratri 2020 : घोड़े पर आयेंगी मां, भैंस पर होंगी विदा, जानें क्यों घोड़े पर आना अशुभ संकेत: >इस बार दुर्गा पूजा और नवरात्रि की शुरुआत 17 अक्तूबर से हो रही है. ऐसे में मां इस नवरात्र घोड़े को अपना वाहन बना रह धरती पर आयेंगी. इसके संकेत अच्छे नहीं हैं. माना जाता है कि घोड़े पर आने से पड़ोसी देशों से युद्ध, सत्ता में उथल-पुथल के साथ ही रोग और शोक फैलता है. बता दें कि इस बार मां भैंस पर विदा हो रही है. इसे भी शुभ नहीं माना जाता है. शारदीय नवरात्रि मां नवदुर्गा जी की उपासना का पर्व है. हर साल यह पावन पर्व श्राद्ध खत्म होते ही शुरू हो जाता है. नवरात्रि पर्व हिन्दू धर्म के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस पावन अवसर पर माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है। इसलिए यह पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है। वेद-पुराणों में माँ दुर्गा को शक्ति का रूप माना गया है जो असुरों से इस संसार की रक्षा करती हैं। नवरात्र के समय माँ के भक्त उनसे अपने सुखी जीवन और समृद्धि की कामना करते हैं। आइए जानते हैं माँ दुर्गा के नौ रूप कौन-कौन से हैं :- 1. माँ शैलपुत्री 2. माँ ब्रह्मचारिणी 3. माँ चंद्रघण्टा 5. माँ स्कंद माता 6. माँ कात्यायनी 7. माँ कालरात्रि 8. माँ महागौरी 9. माँ सिद्धिदात्री सनातन धर्म में नवरात्र पर्व का बड़ा महत्व है कि यह एक साल में पाँच बार मनाया जाता है। हालाँकि इनमें चैत्र और शरद के समय आने वाली नवरात्रि को ही व्यापक रूप से मनाया जाता है। इस अवसर पर देश के कई हिस्सों में मेलों और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। माँ के भक्त भारत वर्ष में फैले माँ के शक्ति पीठों के दर्शन करने जाते हैं। वहीं शेष तीन नवरात्रियों को गुप्त नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इनमें माघ गुप्त नवरात्रि, आषाढ़ गुप्त नवरात्रि और पौष नवरात्रि शामिल हैं। इन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में सामान्य रूप से मनाया जाता है। नवरात्रि पर्व का महत्व यदि हम नवरात्रि शब्द का संधि विच्छेद करें तो ज्ञात होता है कि यह दो शब्दों के योग से बना है जिसमें पहला शब्द ‘नव’ और दूसरा शब्द ‘रात्रि’ है जिसका अर्थ है नौ रातें। नवरात्रि पर्व मुख्य रूप से भारत के उत्तरी राज्यों के अलावा गुजरात और पश्चिम बंगाल में बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर माँ के भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिए नौ दिनों का उपवास रखते हैं। इस दौरान शराब, मांस, प्याज, लहसुन आदि चीज़ों का परहेज़ किया जाता है। नौ दिनों के बाद दसवें दिन व्रत पारण किया जाता है। नवरात्र के दसवें दिन को विजयादशमी या दशहरा के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि इसी दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध करके लंका पर विजय पायी थी। नवरात्रि से जुड़ी परंपरा भारत सहित विश्व के कई देशों में नवरात्रि पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भक्तजन घटस्थापना करके नौ दिनों तक माँ की आराधना करते हैं। भक्तों के द्वारा माँ का आशीर्वाद पाने के लिए भजन कीर्तन किया जाता है। नौ दिनों तक माँ की पूजा उनके अलग अलग रूपों में की जाती है। जैसे - नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री को होता है समर्पित नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माँ पार्वती माता शैलपुत्री का ही रूप हैं और हिमालय राज की पुत्री हैं। माता नंदी की सवारी करती हैं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का फूल है। नवरात्रि के पहले दिन लाल रंग का महत्व होता है। यह रंग साहस, शक्ति और कर्म का प्रतीक है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना पूजा का भी विधान है। नवरात्रि का दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी के लिए है नवरात्रि का दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है। माता ब्रह्मचारिणी माँ दुर्गा का दूसरा रूप हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब माता पार्वती अविवाहित थीं तब उनको ब्रह्मचारिणी के रूप में जाना जाता था। यदि माँ के इस रूप का वर्णन करें तो वे श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं और उनके एक हाथ में कमण्डल और दूसरे हाथ में जपमाला है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है। जो भक्त माता के इस रूप की आराधना करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन का विशेष रंग नीला है जो शांति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघण्टा की होती है पूजा नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघण्टा की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि माँ पार्वती और भगवान शिव के विवाह के दौरान उनका यह नाम पड़ा था। शिव के माथे पर आधा चंद्रमा इस बात का साक्षी है। नवरात्र के तीसरे दिन पीले रंग का महत्व होता है। यह रंग साहस का प्रतीक माना जाता है। नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्माण्डा की होती है आराधना नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्माडा की आराधना होती है। शास्त्रों में माँ के रूप का वर्णन करते हुए यह बताया गया है कि माता कुष्माण्डा शेर की सवारी करती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं। पृथ्वी पर होने वाली हरियाली माँ के इसी रूप के कारण हैं। इसलिए इस दिन हरे रंग का महत्व होता है। नवरात्रि का पाँचवां दिन माँ स्कंदमाता को है समर्पित नवरात्र के पाँचवें दिन माँ स्कंदमाता का पूजा होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। स्कंद की माता होने के कारण माँ का यह नाम पड़ा है। उनकी चार भुजाएँ हैं। माता अपने पुत्र को लेकर शेर की सवारी करती है। इस दिन धूसर (ग्रे) रंग का महत्व होता है। नवरात्रि के छठवें दिन माँ कात्यायिनी की होती है पूजा माँ कात्यायिनी दुर्गा जी का उग्र रूप है और नवरात्रि के छठे दिन माँ के इस रूप को पूजा जाता है। माँ कात्यायिनी साहस का प्रतीक हैं। वे शेर पर सवार होती हैं और उनकी चार भुजाएं हैं। इस दिन केसरिया रंग का महत्व होता है। नवरात्रि के सातवें दिन करते हैं माँ कालरात्रि की पूजा नवरात्र के सातवें दिन माँ के उग्र रूप माँ कालरात्रि की आराधना होती है। पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जब माँ पार्वती ने शुंभ-निशुंभ नामक दो राक्षसों का वध किया था तब उनका रंग काला हो गया था। हालाँकि इस दिन सफेद रंग का महत्व होता है। नवरात्रि के आठवें दिन माँ महागौरी की होती है आराधना महागौरी की पूजा नवरात्रि के आठवें दिन होती है। माता का यह रूप शांति और ज्ञान की देवी का प्रतीक है। इस दिन गुलाबी रंग का महत्व होता है जो जीवन में सकारात्मकता का प्रतीक होता है। नवरात्रि का अंतिम दिन माँ सिद्धिदात्री के लिए है समर्पित नवरात्रि के आखिरी दिन माँ सिद्धिदात्री की आराधना होती है। ऐसा कहा जाता है कि जो कोई माँ के इस रूप की आराधना सच्चे मन से करता है उसे हर प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है। माँ सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं और उनकी चार भुजाएँ हैं। भारत में इस तरह मनाया जाता है नवरात्रि का पावन त्यौहार नवरात्रि के पावन अवसर पर माँ दुर्गा के लाखों भक्त उनकी हृदय से पूजा-आराधना करते हैं। ताकि उन्हें उनकी श्रद्धा का फल माँ के आशीर्वाद के रूप में मिल सके। नवरात्रि के दौरान माँ के भक्त अपने घरों में का माँ का दरवार सजाते हैं। उसमें माता के विभिन्न रूपों की प्रतिमा या चित्र को रखा जाता है। नवरात्रि के दसवें दिन माँ की प्रतिमा को बड़ी धूमधाम के साथ जल में प्रवाह करते हैं। पश्चिम बंगाल में सिंदूर खेला की प्रथा चलती है। जिसमें महिलाएँ एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। वहीं गुजरात में गरबा नृत्य का आयोजन किया जाता है। जिसमें लोग डांडिया नृत्य करते हैं। उत्तर भारत में नवरात्रि के समय जगह-जगह रामलीला का आयोजन होता है और दसवें दिन रावण के बड़े-बड़े पुतले बनाकर उन्हें फूंका जाता है। नवरात्रि के लिए पूजा सामग्री ● माँ दुर्गा की प्रतिमा अथवा चित्र ● लाल चुनरी ● आम की पत्तियाँ ● चावल ● दुर्गा सप्तशती की किताब ● लाल कलावा ● गंगा जल ● चंदन ● नारियल ● कपूर ● जौ के बीच ● मिट्टी का बर्तन ● गुलाल ● सुपारी ● पान के पत्ते ● लौंग ● इलायची नवरात्रि पूजा विधि ● सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें ● ऊपर दी गई पूजा सामग्री को एकत्रित करें ● पूजा की थाल सजाएँ ● माँ दर्गा की प्रतिमा को लाल रंग के वस्त्र में रखें ● मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोयें और नवमी तक प्रति दिन पानी का छिड़काव करें ● पूर्ण विधि के अनुसार शुभ मुहूर्त में कलश को स्थापित करें। इसमें पहले कलश को गंगा जल से भरें, उसके मुख पर आम की पत्तियाँ लगाएं और उपर नारियल रखें। कलश को लाल कपड़े से लपेंटे और कलावा के माध्यम से उसे बाँधें। अब इसे मिट्टी के बर्तन के पास रख दें ● फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पंचोपचार पूजा करें ● नौ दिनों तक माँ दुर्गा से संबंधित मंत्र का जाप करें और माता का स्वागत कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना करें ● अष्टमी या नवमी को दुर्गा पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें और उन्हें तरह-तरह के व्यंजनों (पूड़ी, चना, हलवा) का भोग लगाएं ● आखिरी दिन दुर्गा के पूजा के बाद घट विसर्जन करें इसमें माँ की आरती गाएं, उन्हें फूल, चावल चढ़ाएं और बेदी से कलश को उठाएं नवरात्रि से संबंधित पौराणिक कथा पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि महिषासुर नामक राक्षस ब्रह्मा जी का बड़ा भक्त था। उसकी भक्ति को देखकर शृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी प्रसन्न हो गए और उसे यह वरदान दे दिया कि कोई देव, दानव या पुरुष उसे मार नहीं पाएगा। इस वरदान को पाकर महिषासुर के अंदर अहंकार की ज्वाला भड़क उठी। वह तीनों लोकों में अपना आतंक मचाने लगा। इस बात से तंग आकर ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ सभी देवताओं ने मिलकर माँ शक्ति के रूप में दुर्गा को जन्म दिया। कहते हैं कि माँ दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और दसवें दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। इस दिन को अच्छाई पर बुराई की जीत के रूप में मनाया जाता है। एक दूसरी कथा के अनुसार, त्रेता युग में भगवान राम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले शक्ति की देवी माँ भगवती की आराधना की थी। उन्होंने नौ दिनों तक माता की पूजा की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माँ स्वयं उनके सामने प्रकट हो गईं। उन्होंने श्रीराम को विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। दसवें दिन भगवान राम ने अधर्मी रावण को परास्त कर उसका वध कर लंका पर विजय प्राप्त की। इस दिन को विजय दशमी के रूप में जाना जाता है। आशा करते हैं कि यह नवरात्रि से संबंधित यह लेख आपको पसंद आया होगा। एस्ट्रोसेज की ओर से हम कामना करते हैं कि माँ दुर्गा का आशीर्वाद आपके ऊपर सदा बना रहे। हमारी तरफ से आपको नवरात्रि की शुभकामनाएँ।

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