वास्तु पुरुष कौन है, क्यों जरूरी है उन्हें खुश रखना vastuankkit 8789364798

By VASTUANKKIT  8789364798  

वास्तु पुरुष कौन है, क्यों जरूरी है उन्हें खुश रखना



Vastu Purush Importanceपौराणिक जानकारी के अनुसार भगवान भोलेनाथ के पसीने से की उत्पत्ति हुई है। संपूर्ण वास्तु शास्त्र इन्ही पर केंद्रित माना जाता है। वास्तु पुरुष का प्रभुत्व सभी दिशाओं में व्याप्त है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार वास्तु पुरुष भूमि पर अधोमुख होकर स्थित हैं। उनका सिर ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा की ओर, पैर नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम दिशा तथा उनकी भुजाएं पूर्व एवं उत्तर दिशा और टांगें दक्षिण एवं पश्चिम दिशा की ओर हैं।

पौराणिक शास्त्र बताते हैं कि वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर ब्रह्मा जी ने वास्तु शास्त्र के नियमों की रचना की थी। इनकी अनदेखी करने पर मनुष्य को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक हानि होना निश्चित रहता है।

वास्तु पुरुष को हर मकान का संरक्षक माना गया है यानी वास्तु पुरुष को भवन का प्रमुख देवता माना जाता है। यही वजह है कि हर मकान अथवा हर निर्माण के आधार में वास्तु पुरुष का वास माना गया है।


Importance of Vastu Purush
Importance

अत: खास तौर पर भवन निर्माण अथवा मकान की नींव खोदते समय, घर का मुख्य द्वार लगाते समय, गृह प्रवेश के समय तथा संतान एवं विवाह के समय वास्तु पुरुष की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इससे वास्तु पुरुष खुश होकर मनुष्य को सुख-समृद्धि, हमेशा सेहतमंद बने रहने का आशीष देते हैं।

चूंकि वास्तु पुरुष की उत्पत्ति शिव जी के पसीने से हुई है। इसीलिए वास्तु पुरुष के साथ-साथ, शिव जी, प्रथम पूज्य श्री गणेश तथा ब्रह्मा जी की पूजा करना भी लाभदायी है। वेदों के अनुसार किसी भी निर्माण कार्य के अवसर पर नहीं होता है तो वह निर्माण शुभ फलदायी नहीं होगा।

मकान बनवाते वक्‍त वास्‍तु नियम क्‍यों जरूरी? By VASTUANKKIT  8789364798 |  मानव शरीर और ब्रम्हाण्ड पंचतत्वों से बना हुआ है, भवन भी पांच तत्वों का ही सम्मिश्रित स्वरूप है। ब्रम्हाण्ड, मानव शरीर, एंव भवन इन तीनों में स्थित पांच तत्वों का सामंजस्य स्थापित करके खुशहाल जीवन व्यतीत किया जा सकता है। सूर्यः पूर्व दिशा के स्वामी एंव अग्नि तत्व के कारक है। ये पिता के भी कारक माने जाते हैं। कुदरती कुण्डली में सिंह राशि पंचम भाव का प्रतिनिधित्व करती है, इस कारण हाजमे पर विशेष प्रभाव पड़ता है। भवन में पूर्व की दिशा का ऊंचा होना या वहां पर दो छत्ती का निर्माण होने से महिलाओं को हड्डी रोग तथा सरकारी कर्मचारियों को आये दिन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। स्वास्थ्य और सम्मानित जीवन जीने के लिये भवन पर इसका शुभ प्रभाव पड़ना जरूरी है। चन्द्रः यह जल तत्व का कारक तथा भवन में इनका ईशान कोण (पूर्व-उत्तर), पर विशेष प्रभाव रहता है। सन्तुलित विचार धारा व शुभता बनायें रखनें में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। यह माता का भी प्रतिनिधित्व करते है। इनका कार्य मुख्य रूप से जल संग्रह का है। इनके सन्तुलित होने से जातक को भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति आसानी से होती है तथा मन की चंचलता खत्म होती है। भवन के ईशान कोण में इनकों स्थापित करना शुभ माना जाता है। मंगलः यह अग्नि तत्व के कारक है तथा भवन में दक्षिण दिशा पर इनका विशेष प्रभाव रसोई घर के रूप में होता है, इस कारण रसोई घर के नजदीक, पूजाघर, शौचालय, बाथरूम तथा स्टोर रूम इन तीनों का एक साथ होना किसी बड़े खतरे की सूचना देता है। यह स्थान दूषित होने पर घर के मुखिया को हार्ट अटैक होने की आशंका रहती है। फोर्स व मीडिया से जुड़े लोगो को आये दिन समस्याओं से जूझना पड़ता है। आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) में रसोई घर स्थापित करने से मंगल का अमंगलकारी प्रभाव नही पड़ता है। बुधः यह ग्रह पृथ्वी तत्व का द्योतक है, तथा उत्तर दिशा जो सकारात्मक उर्जा का प्रवाह करती है, इस पर इनका विशेष प्रभाव रहता है। युवा तथा गणितज्ञ होने के कारण इनका छात्रों की शिक्षा एंव बैठक रूम में अधिकार क्षेत्र है, इसलिये इन्हे भी शौचालय, रसोई घर, कबाड़ घर आदि से दूर रखना चाहिये अन्यथा बच्चों की शिक्षा में बाधा एंव परिवार में कलह बनी रहती है। गुरु: ये आकाश तत्व के कारक है तथा ईशान कोण का प्रतिनिधित्व करते है। भवन की जिस दिशा में पूजन गृह बनेगा वह स्थान इनका अधिकार क्षेत्र हो जायेगा। अतः पूजन गृह ईशान कोण में ही स्थापित करें। यह स्थान दूषित होने से- बुर्जुगों से मतभेद, ससुराल पक्ष से तनाव, आर्थिक तंगी, तथा परिवार के सदस्यों के बीच मतभेद बना रहेगा। शुक्रः ये चुम्बकत्व आकर्षण का प्रतीक है, तथा आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) के स्वामी है। शुक्र ग्रह आसुरों के देवता है, इनका सौन्दर्य तथा भोग विलास की वस्तुओं पर निवास स्थल है। इस स्थान के दूषित होने से शैया सुख में कमी, विदेश यात्रा में बाधायें, महिलाओं के स्वास्थ्य पर धन अधिक व्यय एंव सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आयेगी। शनिः ये वायु तत्व के कारक है, तथा पश्चिम दिशा पर इनका विशेष प्रभाव रहता है। ये न्याय एंव अनुशासन प्रिय है जिस परिवार में अन्याय, अनुशासन, गंदगी, मदिरा का सेवन, झूठ आदि होगा वहां के सदस्यों को आये दिन कष्ट बना रहेगा। घर की जिस दिशा में बेसमेन्ट, कूड़ा, अंधेरा, कबाड़ आदि होगा उस स्थान पर इनका स्थाई निवास स्थान माना गया है। पश्चिम दिशा के दूषित होने से- स्थान परिवर्तन, यात्रा में दुर्घटना, दाम्पत्य सुख में कमी, नौकरों का भाग जाना, घर में चोरी जैसी समस्यायें बनी रहेगी। राहु एंव केतुः ये दोनो ग्रह नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) दिशा के कारक होते है। सीढि़यों पर तथा लम्बी गलियों में इनका विशेष प्रभाव रहता है। ये एनर्जी कारक ग्रह है, कुदरती कुण्डली में अष्टम भाव में वृश्चिक राशि पर विशेष प्रभाव रहता है। इस स्थान के दूषित होने से- दुर्घटना, आत्महत्या, पाइल्स रोग, खून की कमी तथा महिलाओं को गर्भपात की समस्या रहती है। भवन का निर्माण करते समय इन सभी ग्रहों को सही दिशा में स्थापित करके सकारात्मक उर्जा को प्राप्त किया जा सकता है। अपने सपनों के जीवनसंगी को ढूँढिये भारत मैट्रिमोनी पर - निःशुल्क रजिस्ट्रेशन करे! अधिक ज्‍योतिष समाचार क्‍या आपके बच्‍चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता? मैरेज लाइफ में खुशियां लाने के लिये वास्‍तु टिप्‍स बिना तोड़फोड़ कैसे दूर करें वास्‍तु दोष डॉक्‍टर, वकील, कंसल्‍टेंट के लिए वास्‍तु टिप्‍स वास्‍तु के अनुसार बेड  By VASTUANKKIT  8789364798 

Comments

Popular posts from this blog

MahaVastu Green Tape - Vastu Remedy Entrance, Toilet Correction and Zone Balancing vastuankkit 8789364789

Septic Tank Vastu (It’s Correct Location & Ill-Effects of Incorrectly Located One) VASTU ANKKIT 8789364798

शनिदेव और रोजगार ,वास्तु अंकित 8789364798