कौन होते हैं अघोरी? कैसे करते हैं साधना, पढ़ें चौंकाने वाले रहस्य वास्तु ankkit 8789364798
कौन होते हैं अघोरी? कैसे करते हैं साधना, पढ़ें चौंकाने वाले रहस्य
सिंहस्थ के निकट आते ही उज्जैन में साधु-संतों ने डेरा जमा लिया है। इस विशाल महा-आयोजन में सबसे ज्यादा अगर कोई आकर्षण का विषय है तो वह है अघोरी। वह जो कापालिक क्रिया करते हैं। वह जो तांत्रिक साधना श्मशान में करते हैं और वह जो भस्म से लिपटे होते हैं जिनसे आमजन स्वाभाविक तौर पर डरते हैं।
घोरी-अघोरी-तांत्रिक श्मशान के सन्नाटे में जाकर तंत्र-क्रियाओं को अंजाम देते हैं। घोर रहस्यमयी साधनाएं करते हैं। वास्तव में अघोर विद्या डरावनी नहीं है। उसका स्वरूप डरावना होता है। अघोर का अर्थ है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो।
ऐसा माना जाता है कि अघोरी मानव के मांस का सेवन भी करता है। ऐसा करने के पीछे यही तर्क है कि व्यक्ति के मन से घृणा निकल जाए। जिनसे समाज घृणा करता है अघोरी उन्हें अपनाता है। लोग श्मशान, लाश, मुर्दे के मांस व कफ़न से घृणा करते हैं लेकिन अघोर इन्हें अपनाता है।
अघोर विद्या भी व्यक्ति को हर चीज़ के प्रति समान भाव रखने की शिक्षा देती है। अघोरी तंत्र को बुरा समझने वाले शायद यह नहीं जानते हैं कि इस विद्या में लोक कल्याण की भावना है। अघोर विद्या व्यक्ति को ऐसा बनाती है जिसमें वह अपने-पराए का भाव भूलकर हर व्यक्ति को समान रूप से चाहता है, उसके भले के लिए अपनी विद्या का प्रयोग करता है।
अघोर विद्या के जानकारों का मानना है कि जो असली अघोरी होते हैं वे कभी आम दुनिया में सक्रिय भूमिका नहीं रखते, वे केवल अपनी साधना में ही व्यस्त रहते हैं। अघोरियों की पहचान ही यही है कि वे किसी से कुछ मांगते नहीं है।
क्या है अघोरपंथ
साधना की एक रहस्यमयी शाखा है अघोरपंथ। उनका अपना विधान है, अपनी विधि है, अपना अलग अंदाज है जीवन को जीने का। अघोरपंथी साधक अघोरी कहलाते हैं। खाने-पीने में किसी तरह का कोई परहेज नहीं होता। अघोरी लोग गाय का मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजों का भक्षण करते हैं। अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है, इसीलिए अघोरी शमशान वास करना ही पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है।
अघोर पंथ की उत्पत्ति और इतिहास
अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था। अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरु माना जाता है। अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं। अघोर संप्रदाय के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने अवतार लिया। अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है। अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं। इनके अनुसार शिव स्वयं में संपूर्ण हैं और जड़, चेतन समस्त रूपों में विद्यमान हैं। इस शरीर और मन को साध कर और जड़-चेतन और सभी स्थितियों का अनुभव कर के और इन्हें जान कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।
क्या करते हैं अघोरी
अघोर संप्रदाय के साधक समदृष्टि के लिए नर मुंडों की माला पहनते हैं और नर मुंडों को पात्र के तौर पर प्रयोग भी करते हैं। चिता के भस्म का शरीर पर लेपन और चिताग्नि पर भोजन पकाना इत्यादि सामान्य कार्य हैं। अघोर दृष्टि में स्थान भेद भी नहीं होता अर्थात महल या श्मशान घाट एक समान होते हैं।
प्रमुख अघोर स्थान
वाराणसी या काशी को भारत के सबसे प्रमुख अघोर स्थान के तौर पर मानते हैं। भगवान शिव की स्वयं की नगरी होने के कारण यहां विभिन्न अघोर साधकों ने तपस्या भी की है। यहां बाबा कीनाराम का स्थल एक महत्वपूर्ण तीर्थ भी है। काशी के अतिरिक्त गुजरात के जूनागढ़ का गिरनार पर्वत भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। जूनागढ़ को अवधूत भगवान दत्तात्रेय के तपस्या स्थल के रूप में जानते हैं।
अघोरियों का स्वभाव
अघोरियों के बारे में मान्यता है कि बड़े ही रूखे स्वभाव के होते हैं लेकिन भीतर उनमें जन कल्याण की भावना छुपी होती है। अगर किसी पर मेहरबान हो जाए तो अपनी सिद्धि का शुभ फल देने में भी नहीं हिचकते और अपनी तांत्रिक क्रियाओं का रहस्य भी उजागर कर देते हैं। यहां तक कि कोई उन्हें अच्छा लग जाए तो उसे वह अपनी तंत्र क्रिया सीखाने को भी राजी हो जाते हैं लेकिन इनका क्रोध प्रचंड होता है।
इनकी वाणी से सावधान रहना चाहिए। इनके आशीर्वाद शीघ्र प्रतिफलित होते हैं। यह अगर खुश हो जाए तो आपकी किस्मत बदलने की क्षमता रखते हैं। आमतौर पर यह किसी से खुलकर बात नहीं करते। अपने आप में मगन रहने वाले यह तांत्रिक, समाज से दूर रहते हैं, हिमालय की कठिन तराइयों में इनका वास होता है। कहते हैं इन्हें साक्षात शिव भी दर्शन देते हैं। और जब तक इन्हें ना छेड़ा जाए किसी का अहित नहीं करते।
अघोरी साधना कहां होती है
अघोरी श्मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं - श्मशान साधना, शिव साधना, शव साधना। ऐसी साधनाएं अक्सर तारापीठ के श्मशान, कामाख्या पीठ के श्मशान, त्र्यम्बकेश्वर और उज्जैन के चक्रतीर्थ के श्मशान में होती है। अघोर पंथियों के 10 तांत्रिक पीठ माने गए हैं।
अघोरी साधना कैसे की जाती है
शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पांव है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाया जाता है। शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।
अघोरपंथ की तीन शाखाएं
अघोरपंथ की तीन शाखाएं प्रसिद्ध हैं - औघड़, सरभंगी, घुरे। इनमें से पहली शाखा में कल्लूसिंह व कालूराम हुए, जो किनाराम बाबा के गुरु थे। कुछ लोग इस पंथ को गुरु गोरखनाथ के भी पहले से प्रचलित बतलाते हैं और इसका सम्बन्ध शैव मत के पाशुपत अथवा कालामुख सम्प्रदाय के साथ जोड़ते हैं।
घोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है। अघोरी जानना चाहता है कि मौत क्या होती है और वैराग्य क्या होता है। आत्मा मरने के बाद कहां चली जाती है? क्या आत्मा से बात की जा सकती है? ऐसे ढेर सारे प्रश्न है जिसके कारण अघोरी श्मशान में वास करना पसंद करते हैं। मान्यता है कि श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है। श्मशान में साधारण मानव जाता ही नहीं, इसीलिए साधना में विघ्न पड़ने का कोई प्रश्न नहीं।
अघोरी मानते हैं कि जो लोग दुनियादारी और गलत कामों के लिए तंत्र साधना करते हैं अंत में उनका अहित ही होता है। श्मशान में तो शिव का वास है उनकी उपासना हमें मोक्ष की ओर ले जाती है।
अघोरी श्मशान में कौन-सी साधना करते हैं...
FILE |
अघोरी श्मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं- श्मशान साधना, शव साधना और शिव साधना।
शव साधना : मान्यता है कि इस साधना को करने के बाद मुर्दा बोल उठता है और आपकी इच्छाएं पूरी करता है।
देखिए शव साधना का वीडियो...
आधी रात के बाद श्मशान साधना
शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पांव है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाया जाता है।
शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।
अगले पन्ने पर पढ़ें, भूत-पिशाचों से बचने के लिए क्या करते हैं अघोरी...
अघोरियों के पास भूतों से बचने के लिए एक खास मंत्र रहता है। साधना के पूर्व अघोरी अगरबत्ती, धूप लगाकर दीपदान करता है और फिर उस मंत्र को जपते हुए वह चिता के और अपने चारों ओर लकीर खींच देता है। फिर तुतई बजाना शुरू करता है और साधना शुरू हो जाती है। ऐसा करके अघोरी अन्य प्रेत-पिशाचों को चिता की आत्मा और खुद को अपनी साधना में विघ्न डालने से रोकता है।
अगले पन्ने पर पढ़ें, क्यों जिद्दी और गुस्सैल होते हैं अघोरी...
अघोरियों के बारे में मान्यता है कि वे बड़े ही जिद्दी होते हैं। अगर किसी से कुछ मांगेंगे, तो लेकर ही जाएंगे। क्रोधित हो जाएंगे तो अपना तांडव दिखाएंगे या भला-बुरा कहकर उसे शाप देकर चले जाएंगे। एक अघोरी बाबा की आंखें लाल सुर्ख होती हैं लेकिन अघोरी की आंखों में जितना क्रोध दिखाई देता हैं बातों में उतनी ही शीतलता होती है।
अगले पन्ने पर अघोरी की वेशभूषा...
कफन के काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी बाबा के गले में धातु की बनी नरमुंड की माला लटकी होती है। नरमुंड न हो तो वे प्रतीक रूप में उसी तरह की माला पहनते हैं। हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध और पूरे शरीर पर राख मलकर रहते हैं ये साधु। ये साधु अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे 'सिले' कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को 'सींगी सेली' कहते हैं।
अगले पन्ने पर अघोरपंथ तांत्रिकों के तीर्थस्थल...
अघोरपंथ के लोग चार स्थानों पर ही श्मशान साधना करते हैं। चार स्थानों के अलावा वे शक्तिपीठों, बगलामुखी, काली और भैरव के मुख्य स्थानों के पास के श्मशान में साधना करते हैं। यदि आपको पता चले कि इन स्थानों को छोड़कर अन्य स्थानों पर भी अघोरी साधना करते हैं तो यह कहना होगा कि वे अन्य श्मशान में साधना नहीं करते बल्कि यात्रा प्रवास के दौरान वे वहां विश्राम करने रुकते होंगे या फिर वे ढोंगी होंगे।
तीन प्रमुख स्थान :
1. तारापीठ का श्मशान : कोलकाता से 180 किलोमीटर दूर स्थित तारापीठ धाम की खासियत यहां का महाश्मशान है। वीरभूम की तारापीठ (शक्तिपीठ) अघोर तांत्रिकों का तीर्थ है। यहां आपको हजारों की संख्या में अघोर तांत्रिक मिल जाएंगे। तंत्र साधना के लिए जानी-मानी जगह है तारापीठ, जहां की आराधना पीठ के निकट स्थित श्मशान में हवन किए बगैर पूरी नहीं मानी जाती। कालीघाट को तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है
कालीघाट में होती हैं अघोर तांत्रिक सिद्धियां
2. कामाख्या पीठ के श्मशान : कामाख्या पीठ भारत का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जो असम प्रदेश में है। कामाख्या देवी का मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। प्राचीनकाल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र-सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। कालिका पुराण तथा देवीपुराण में 'कामाख्या शक्तिपीठ' को सर्वोत्तम कहा गया है और यह भी तांत्रिकों का गढ़ है।
3. रजरप्पा का श्मशान : रजरप्पा में छिन्नमस्ता देवी का स्थान है। रजरप्पा की छिन्नमस्ता को 52 शक्तिपीठों में शुमार किया जाता है लेकिन जानकारों के अनुसार छिन्नमस्ता 10 महाविद्याओं में एक हैं। उनमें 5 तांत्रिक और 5 वैष्णवी हैं। तांत्रिक महाविद्याओं में कामरूप कामाख्या की षोडशी और तारापीठ की तारा के बाद इनका स्थान आता है।
4. चक्रतीर्थ का श्मशान : मध्यप्रदेश के उज्जैन में चक्रतीर्थ नामक स्थान और गढ़कालिका का स्थान तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। उज्जैन में काल भैरव और विक्रांत भैरव भी तांत्रिकों का मुख्य स्थान माना जाता है।
मां गढ़कालिका के बारे में जानिए...
सभी 52 शक्तिपीठ तो तांत्रिकों की सिद्धभूमि हैं ही इसके अलावा कालिका के सभी स्थान, बगलामुखी देवी के सभी स्थान और दस महाविद्या माता के सभी स्थान को तांत्रिकों का गढ़ माना गया है। कुछ कहते हैं कि त्र्यम्बकेश्वर भी तांत्रिकों का तीर्थ है।
अंत में पढ़ें तांत्रिकों के देवी-देवताओं के नाम...
तंत्र की मुख्य 10 देवियां हैं जिन्हें 10 महाविद्या कहा जाता है-
ये दस हैं- 1. काली, 2. तारा, 3. षोडशी, (त्रिपुरसुंदरी), 4. भुवनेश्वरी, 5. छिन्नमस्ता, 6. त्रिपुर भैरवी, 7. द्यूमावती, 8. बगलामुखी, 9. मातंगी और 10. कमला।
कालिका के तीन प्रमुख तीर्थस्थान...
जय मां कालिका
भैरव : भगवान भैरव को शिव का अंश अवतार माना जाता है और ये तांत्रिकों के प्रमुख पूजनीय भगवान हैं। इन्हें शिव के 10 रुद्रावतारों में से एक माना गया है। भैरव के 8 रूप हैं-
1. असितांग भैरव, 2. चंड भैरव, 3. रूरू भैरव, 4. क्रोध भैरव, 5. उन्मत्त भैरव, 6. कपाल भैरव, 7. भीषण भैरव, 8. संहार भैरव।
भय को भगाए काल भैरव...
10 रुद्रावतार हैं- 1. महाकाल, 2. तार, 3. बाल भुवनेश, 4. षोडश श्रीविद्येश, 5. भैरव, 6. छिन्नमस्तक, 7. धूमवान, 8. बगलामुख, 9. मातंग और 10. कमल
Comments
Post a Comment