शनि देव VASTU ANKIT 8789364798

 श्री हरि जय सिया राम , 

शनि देव =

               वैदिक ज्योतिष में शनि देव को पाप ग्रह बताया गया और यह सूर्य से बहुत दूर है और अंधकार प्रिय है इनके बारे में ज्यादा जो भी पड़ते है या ज्यादा बुरा ही सुनने को मिलता है इनके बारे में , और यह अंधकार  है सूर्य से दूर है तो मद गति ग्रह है यही सबसे ज्यादा समय तक एक राशि मे रहते है जब चन्द्र राशि मे यह आता है जब साढे साती लगती है जो प्रायः दुखदायक समय ही होता है और शनि देव अंधकार कोई वहां पे चमक दमक नही और यह भी अकेले सबसे दूर जो है सूर्य से ,तो जब यह हमारे मन का कारक चन्द्रमा है उसके साथ हो मन मे वैराग्य उतपन करता है भोग विलास की इच्छा रखने वाले को तो यह योग अच्छा नही लगता है पर जो आध्यात्मिक लोग है या आध्यात्मिक दृष्टि  से यह योग अच्छा है और यह अनुभव ही है कि जिनका चन्द्रमा शनि देव के साथ हो , उनका  वैराग्य हो जाता है और  भोग विलास में रुचि कम होती है वैसे तो भाग्य 9 भाव मे पाप ग्रह बुरा फल देते है मगर जब 9 भाव मे शनि और गुरु का युति या दृष्टि से सम्बद हो यह योग जातक को आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत ऊपर ले जाता है और 9 भाव मे प्रायः शनि देव अच्छा ही फल देते है यह जिस भाव मे हो उस भाव की तो वृद्धि ही करते है मगर इनकी दृष्टि को बुरा माना गया है जिस भाव देखते है उस भाव के सम्बदी फल बहुत ही कम मिलते है और अगर मिलते है तो भी बहुत देरी से , एमजीआर अपने भाव अपनी राशि को देखते है उसकी तो वृद्धि करते ही है चाहे कोई भी ग्रह क्यों ना हो तो यह शनि देव भी अपने भाव की वृद्धि करते है मगर उस भाव के जीवन के सम्बदी नही , जैसे 11 भाव को देखे तो अपनी राशि को तो आय तो ठीक देगा , पर बड़ा भाई नही , ऐसे ही जैसे 5 भाव को देखे तो बहुत अच्छी बुद्धि , गणित आदि विषय का ज्ञान देगा , पर 5 भाव का जीवन है सन्तान उसकी हानि करेगा , सन्तान देगा ही नही , देगा तो लम्बी आयु नही , देगा ,   


श्री हरि जय सिया राम , 

रोग =

     ★★★★★

              👌🌸👉


                       पहला सुख हर इंशान को यही हैं निरोगी काय , और रोग के विषय में बात करे तो ज्योतिष की दृष्टि से तो 6 भाव से रोग का विचार किया जाता हैं 6 भाव ही रोग का हैं और रोग के साथ साथ विचार करे तो शत्रु आदि का स्थान भी 6 भाव है रोग का विचार करे तो रोग केसा होगा , कब होगा किस अंग में पीड़ा होगी आदि का विचार , सबसे पहले तो 6 भाव रोग का हैं तो इस घर में जो ग्रह हैं जो राशि हैं उसके अनुरूप ही रोग होंगे, और उसके साथ साथ भावेत भावम के सिद्धात से हमे 11 भाव से भी रोग का विचार किया जाता हैं ग्रह और राशि जो पीड़ित होती हैं वो ही रोग होता हैं तो सूर्य खुद अग्नि हैं हडिययो का कारक हैं प्रकाश हैं और सूर्य की राशि सिंह वो पेट की कारक हैं तो जब सूर्य पीड़ित होगा और रोग देगा तो वो हडिययो में दिक्कत देगा, अग्नि सम्बदि रोग देगा, भुखार आदि , प्रकाश हैं तो आँखों में दिक्कत देगा और सिंह राशि पेट की कारक हैं पेट में भी परेसानी देगा, चन्द्रमा हमारा मन का कारक हैं भावनाएं , मानशिक स्तिथि का कारक हैं सूर्य की तरह यह भी प्रकाश हैं और कर्क राशि जिसका स्वामी हैं वो छाती , किडनी आदि का कारक पुरुष के अंगों में कारक हैं तो चन्द्रमा रोग देने वाला , हुआ तो इन अंगों को पीड़ित करेगा , उसकी तरह मंगल देखने में लाल रंग का हैं तो रक्त का कारक तो मंगल ही हैं और उसकी राशि की बात करे तो मेष सर ,मष्तिक की कारक हैं और वृश्चिक राशि लिंग और गुदा की कारक हैं जब यह रोग देने वाला हुआ तो इन अंगों में रोग देगा , मंगल क्रोधी स्वभाव का हैं और इसकी दृष्टि मरणात्मक प्रभाव रखती हैं  तो जिस अंग पे इसकी दृष्टि पड़ेगी उस अंग को चोट या काट देगा और मंगल के साथ अगर केतु की भी दृष्टि पड़ेगी तो यह योग और पक्का हो जाएगा, बुध बुद्धि का कारक हैं और इसकी राशि मिथुन स्वास नली , बाजू आदि की कारक हैं और कन्या राशि कमर की कारक हैं तो यह पीड़ित हो पागल पन , स्वास नली , बाजू कमर आदि में पीड़ा देता हैं गुरु बड़ा ग्रह हैं चर्वी , लिवर आदि का कारक हैं और धनु और मीन राशि कारक जघा और पैर की कारक हैं तो यह पीड़ित हो इन अंगों में पीड़ा देता हैं इस तरह हमे और ग्रह का भी समझ लेना चाहिए, रोग को सा होगा इसके लिए यह कुछ बाते याद , रखनी चाहिए, 6 भाव की राशि और उसके स्वामी का गुण दोष का रोग होगा , दूसरा , शनि , राहु, और सूर्य की दृष्टि जिस भाव पे पड़ेगी, उस भाव के सम्बदि रोग जरूर होगा , क्योंकि इनकी दृष्टि  पृथ्जनात्मक प्रभाव रखती हैं किसी भाव में नीच ग्रह होगा और उसपे पाप ग्रह की दृष्टि होगी तो उस भाव में कैंसर आदि असाध्य रोग होंगे, दीर्घ काल के रोग होंगे तो वो शनि राहु  जैसे ही ग्रह देगे कुंडली प्रश्न कुंडली  के फलादेश के लिए सम्पर्क करें 


श्री हरि जय सिया राम , 

ग्रहो के सामान्य योग =

                ★★★★★

👉 एक ही ग्रह यदि केंद्र और त्रिकोण का स्वामी हो तो वो योगकारक और राजयोग दाता होता है 

👉राहु और केतु हमेसा वक्री चलते है तो इनकी दशाओं की चीजें लौटाई या वापिश आ जाती है 

👉लग्नेश सूर्य के साथ हो तो विशेष फल दायक होता है 

👉अष्टम भाव मे सभी ग्रह कमजोर होते है पर  सूर्य और चन्द्रमा को अष्टमेश का दोष नही लगता तो वो बलबान ही रहते है 

👉मंगल और शुक्र योग हो तो जातक दुराचारी होता है 

👉नवमेश दशम भाव मे और दसमेश नवम भाव मे हो तो सबसे श्रेष्ठ राजयोग होता है

👉 शनि पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक धार्मिक और मोक्ष की इच्छा रखने वाला होता है 

👉 कोई भी ग्रह यदि वर्गोतम हो तो वो स्वराशि के अनुसार फल करता है 

👉11 भाव  में सभी ग्रह  शुभ फल दायक होते है 

👉  लग्न से 6 भाव तक को पाताल भाव कहते है यदि ज्यादा ग्रह इन भावों में हो तो मनुष्य के गुण छिपे रहते है अपनी योगिता का प्रयोग करने का कम अवसर मिलता है और 7 भाव से 12 भाव आकाश भाव होते है इन भावों में यदि  ग्रह हो तो मनुष्य के गुण सब को पता होते वो और लोगो को अपनी सेवा में रखता है कुंडली प्रश्न कुंडली के फलादेश आदि के लिए सम्पर्क करें 


श्री हरि जय सिया राम , 

कुछ सामान्य नियम =

       ******

👉 कर्क और सिंह लग्न को छोड़कर 4 भाव मे मंगल बहुत खराब होता है ऐसा मंगल जीवन भर दुखी रखता है और दया रहित होता है जातक , 

👉अष्टमेष 8 भाव मे हो तो मारक ना होकर आयु की वृद्धि करता है 

👉 लग्नेश और 6 भाव के स्वामी का एक्स्चेंज हो तो जातक रोगी ना होकर स्वस्थ रहता है लग्नेश बलबान होना चाहिए , 

👉किसी भी मांगलिक कुंडली मे मंगल के साथ गुरु या मंगल पर गुरु की दृष्टि होने पर भी मांगलिक दोष दूर नही होता , 

👉यदि धनेश और लाभेश 6 भाव मे हो तो जातक जीवन भर  ऋणी रहता है 

👉लग्नेश और  भाग्येश के रत्न के साथ धारण करने से लाभ होता है 

👉मंगल की दृष्टि सप्तम भाव पर हो ऐसे जातक की पत्नी को मासिक धर्म मे अनियमितता रहती है 

👉 तृतीय भाव मे कर्क राशि का मंगल हो उसके छोटे भाई नही होता है 

👉 शुक्र व्यय भाव मे व्यय भाव के स्वामी के साथ हो तो महान धन दायक योग होता है 

👉 केतु या राहु या शनि मंगल व्यय भाव मे हो तो आर्थिक शंकट रहता है 

👉 कुंडली प्रश्न कुंडली के फलादेश और राशि रत्न के लिए सम्पर्क करें 


श्री हरि जय सिया राम 

विवाह = 

            सभी के मन में प्रायः यह प्रश्न उठता हैं कि मुझे सूंदर पत्नी मिलेगी या मुझे सूंदर पति मिलेगा यह प्रश्न सबके मन में प्रायः आता रहता हैं और मुझे पत्नी का सुख मिलेगा या पति का सुख मिलेगा कितना मिलेगा आदि सभी प्रश्न दिमाग में रहते हैं सबसे पहले जिस की भी जातक की कुंडली में शुक्र और चन्द्रमा अच्छे हो उच्च हो शुभ प्रभाव में हो तो जातक को स्त्री सुख अच्छा मिलता हैं और इसके विपरीत शुक्र और चन्द्रमा पाप प्रभाव में हो नीच , अस्त आदि हो तो स्त्री सुख उस पुरुष को बहुत कम मिलता हैं अब जिस लड़की की कुंडली में गुरु बलबान हो शुभ , उच्च , सूर्य आदि से दूर हो तो उसको पति का सुख अच्छा और चरित्रबान पति मिलता हैं इसके विपरीत गुरु पाप प्रभाव में हो अस्त नीच आदि हो तो उस को पति का सुख कम मिलता हैं अब दूसरा प्रश्न पति या पत्नी सूंदर मिलेगी या नहीं इसका विचार आप सप्तम भाव से करेगे जिस जातक के सप्तम भाव में सम राशि हो मतलब 2,4,6, आदि हो उसको सूंदर पत्नी मिलती हैं और जिस कन्या की कुंडली में सप्तम भाव में सम राशि हो उसका पति सूंदर होता हैं इसके विपरीत जब सप्तम स्थान में विषम राशि हो तो पति या पत्नी सूंदर नहीं होती 


श्री हरी जय सिया राम 

शनि देव =

            👉🏽 शनि देव और साढ़े सती क्या है जन्म कुंडली में में चद्र जिस राशि में रहता है वह जातक की जन्म राशि कहलाती है जब जनम राशि से गोचर बस शनि 12 वे भाव में आता है यह  साढे सती का पहला चरण होता है जनम राशि में दूसरा चरण और दूसरे भाव में प्रवेश 3 चरण होता है और ढ़ेया क्या है  शनि गोचर में जब 4 और 8 भाव में हो यह अवधि ढ़ेया होती है शनि की साढे सति 7वर्ष और 6 माह की होती है तो लगभग 2700 दिनों की होती है उस टाइम जातक के सरीर के बिभिन अंगो पर किस प्रकार पड़ता है उसका विवरण 

1= 100दिन पहले मुख पर रहता है यह टाइम हानिकारक होता है 

2= 101_500दिन तक शनि बाह पर रहता है यह समय लाभदायक सिद्ध होता है 

3= 501 से 1101दिन इस टाइम शनि पावो पर रहता है इस टाइम यात्रा करवाता है 

4= 1101 से 1600 दिन तक शनि पेट पर रहता है यह टाइम लाभदायक सिद्धिदायक होता है 

5= 1601 से 2000 दिन तक शनि वायी भुजा पर रहता है यह टाइम रोग कष्ट हानि देता है 

6= 2001से 2300 दिन तक शनि मस्तक पर रहता है यह टाइम लाभदायक और सरकारी कार्यो में सफलता देता है 

7= 2301 से 2500 दिन शनि आखो पर रहता है यह समय सुखदायक और सोभाग्य कारक होता है 

8= 2501 से 2700दिन शनि गुदा पर रहता है यह टाइम दुःखदायक होता है #रवि सारस्वत 

इसके शनि के बाहनो के भी शुभ  असुभ  फल होता है शनि के बाहनो का फल 

1= गधा = दुःख वाद विबाद 

2=घोडा = सुख संपति  यात्रा 

3=हाथी= सुख सम्पति रूचि के अनुसार हर भोजन मिले 

4= बकरा = अनिष्ठ अपयश रोग  मान हानि 

5=सियार = भय  कष्ट डर पीड़ा 

6=शेर = विजय लाभ यश  प्रसिद्धि 

7=कौआ =मानसिक कष्ठ ब् पीड़ा 

8= हंस= विजय यश लाभ मानसमान 

9= मयूर = सुख लाभ  

शनि का कोण सा वाहन है शुभ असुभ  फल देगा यह जानने के लिए जन्म नक्षत्र से गोचर शनि के नक्षत्र तक गिने वह संख्या 9 से अधिक हो 9 से भाग दे दे जो शेष बचे उसी संख्या का वाहन होगा


 श्री हरि जय सिया राम .

राहु देव =

           राहु और केतु के बारे बात करे तो इनका स्वतन्त्र तो कोई फल है नही यह यो जिस भाव मे जिस भाव के स्वामी के साथ हो वैसे हो जाते है राहु जब शुभ शुभ ग्रहों से सयुक्त हो तो शुभ फल और असुभ ग्रहो से सयुक्त हो तो असुभ फल देते है विभीन्नन भावो में आज राहु होने से क्या फल होगा ,

1= केंद्र और त्रिकोण में राहु असुभ फल देते है मगर राहु केंद्र में हो तो अपनी दशा अंतर दशा में राजयोग भी देते हैं 

2= दूसरे भाव मे राहु धन का व्यय और परिवार में कलह देता है 

3= तीसरे भाव मे राहु जातक को पराक्रमी बनाता है पर भाइयो के सम्बद में यहाँ राहु बुरा ही फल देता है कर्ण रोग भी देता है और धैर्यहीन भी बनाता है

4= भाव मे राहु माता का सुख तो पूरा देता है पर माता को कष्ट , रोग आदि देता है 

5= पंचम भाव मे राहु सन्तान सुख कम देता है सन्तान की हानि करता है और बहुत चतुर बुद्धि का बनाता है 

6= छटे भाव मे राहु शत्रु भय रोग आदि देता है दूसरे धर्म के लोगो से भी कष्ट देता हैं 

7=सप्तम भाव मे राहु अपनी दशा अंतर दशा में तो राजयोग देता है पर वैवाहिक सुख कम देता है पति , पत्नी को कष्ट आदि देता है 

8= अष्टम भाव मे राहु भयांनक रोग , विपत्तियां , अप्राकृतिक मृतयु आदि देता हैं 

9= नवम भाव मे राहु , गुरु और बड़े व्यक्तियों के प्रति कृतघ्न बनाता है यह धर्म मे भी कोई विशेष रुचि नही देता , और पिता को विपत्तियां और कठिनाइया देता हैं 

10= दशम भाव मे राहु जातक को 36 वर्ष के बाद विशेष भाग्य उदय करवाता है यह गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान भी करवाता है असुभ राहु दशम भाव मे निदित कर्म करवाता है 

11=एकादस भाव मे राहु धनलाभ में विघ्न डालता है

12= 12 भाव मे राहु आंखों को कष्ट और धन का व्यय करवाता है



 श्री हरि जय सिया राम , 

गुरु ग्रह =

               देव गुरु वृहस्पति की बात करे तो इनको विश्व के सभी ऋषियो ने एकमत से शुभ ग्रह माना है गुरु ग्रह अकेला ही लाखो दोष को दूर करता है यह धनु और मीन राशि का स्वामी है और कर्क राशि मे उच्च का और मकर राशि मे नीच होता है 

गोचर में जन्मकुंडली से चन्द्रमा से जब वृहस्पति जब 4 -6-8-10 और 12 में आता है तो जातक के लिए हानिकारक होता है जिसमे से 4 माता के लिए , 10 पिता को कष्ट देता है और जगह स्वयं को कष्ट देता है किसी भी लग्न के में जब गुरु गोचर के दौरान जब , लग्न , तृतीय , सप्तम और एकादश भाव मे आता है तो जातक का विवाह होने की संभावना होती है परंतु यही योग जब चन्द्र लग्न से भी हो जाये तो , तो उस वर्ष निश्चित ही जातक का विवाह होता है और इसी तरह जब लग्न और चन्द्र लग्न से गुरु गोचर , 5 , 9 , और एकादश और लगन भाव मे आता है तो सन्तान लाभ होता है और इस तरह जब द्वितीय , चतुर्थ , 6 और 10 भाव मे जब गुरु आता है तब नोकरी , प्रमोशन, नवीन कार्य ,व्यवसाय आदि का लाभ होता है गुरु स्त्री का पति का भी कारक है यह जब जन्मकुंडली में त्रिक भाव मे हो तो , स्त्री को पति का सुख कम मिलता है और विवाह आदि में भी देरी होती है धनु और मीन लग्न में तो गुरु लग्नेश भी होता है पर मिथुन और कन्या लग्न में गुरु केंद्र भाव का स्वामी होता है मतलब इन लग्नो में गुरु केन्द्रादिपत्य दोष से दूषित होता है जब इस दोष से दूषित हो गुरु जब 6 ,8, 12 भाव मे हो तो विवाह सुख नही देता या विवाह , होने ही नही देता और ऐसा गुरु अपनी दशा , अन्तर्दशा में बहुत शारीरक पीड़ा स्वास्थ्य  सम्बदी पीड़ा देता है विष्णु पूजा और पीपल के वृक्ष की पूजा से गुरु ग्रह के असुभ फल को कम किया जाता है जानकारी अच्छी लगे तो नीचे दिए लिंक से पेज भी लाइक करे राम राम रवि सारस्वत


श्री हरि जय सिया राम, 

ग्रह धातु और रोग ,

                          वैदिक ज्योतिष में ग्रह धातु और रोग की बात करे तो हमे अगर इन चीजो की सही जानकारी हो तो हम कुंडली से रोग का निर्णय सही सही लगा सकते हैं तो आज  ग्रहो की धातु और रोग की बात करते हैं 

सूर्य = अग्नि का रूप हैं तो अग्नि सम्बदि रोग देता हैं और कारक पुरुष में सिंह राशि पेट की कारक हैं तो सिंह का स्वामी सूर्य हैं तो पेट के रोग , सूर्य की धातु पित प्रधान हैं तो पित्त के रोग देगा जैसे , पेट में जलन , पाँचन विकृति , यकृत विकार आदि , 

चन्द्रमा = चन्द्रमा जलीय ग्रह हैं और यह कफ और वात का प्रतिनिधि त्वब करता हैं तो यह रोग देगा तो जलीय ही होंगे , जलोदर, फेफड़ो में जल होना, मष्तिक के रोग, कर्क राशि कारक पुरुष के छाती की कारक हैं तो छाती के रोग , कफ , खासी, दमा, आदि रोग देगा , 

मंगल = मंगल भी अग्नि का प्रतिनिधि करता हैं और साथ साथ शस्त्र का भी , तो यह रोग देगा तो , हथियार से चोट , ज्वर , कटना, फटना, जलना, यह रक्त का भी प्रतिनिधि करता हैं तो रक्त विकार , भी देगा इसकी धातु भी पित हैं 

बुध = बुध की बात करे तो , इसको  ज्वर का प्रतिनिधि माना गया हैं इसकी धातु भी त्रिदोष ( कफ , वात , पित ) हैं किसी सक्रमण के कारण जो रोग हो , मष्तिक ज्वर , डेंगू, बुध की राशि  मिथुन और कन्या कमर और वाजु कंधों की कारक हैं तो यह यहाँ भी रोग देता हैं 

गुरु =गुरु ग्रह की धातु कफ हैं यह गैसीय ग्रह हैं तो गैस आदि की दिक्कत और इसकी राशि धनु और मीन पैर जघा और पैर की कारक हैं तो यह यहाँ इन अंगों में दिक्कत देता हैं इसका सम्बंद चर्वी से हैं तो यह चर्वी आदि के रोग देता हैं मोटापा आदि रोग इसी के हैं 

शुक्र =शुक्र की धातु भी कफ हैं और इसकी राशि वृष और तुला मुख और मूत्राशय आदि के रोग देता हैं यह जलाभाव का घोतक हैं रोग शरीर में पानी कमी पैदा कर दे वो रोग होंगे , साथ साथ गुप्त रोग , वीर्य रोग , प्रेमह, एड्स आदि रोग यह देता हैं 

शनि = शनि तो कमी का ग्रह हैं ही , और वात प्रकृति का हैं तो यह रोग का प्रतिनिधि होगा तो , भूख की कमी , अभाव, कुपोषण, अत्यंत दिन जीवन स्तर के रोग , कमजोरी , खून की कमी , अंधापन, भेगापन, पोलियो, गठिया, वातरोग आदि यही देगा , 

राहु और केतु की बात करे तो राहु के रोग शनि के समान और केतु के मंगल के समान यह ग्रह जिस भाव को देखते हैं उसको रोगी बनाते हैं जानकारी अच्छी लगे तो पेज लाइक करे 



श्री हरि जय सिया राम , 

दुर्घटना =

     ★★★★

                   आज दुर्घटना की बात करे ज्योतिष में तो  6 भाव चोट का भाव है और 8 भाव मृत्यु का भाव है दुर्घटना के कारक ग्रहों की बात करे तो वो है केतु और मंगल यह दोनों जब कुंडली मे असुभ हो तो दुर्घटना होती है भावेत भावम के सिद्धांत से 6 से 6 भाव 11 भाव भी चोट आदि का होता है और 2 और 7 भाव  मारक भाव होता है कोई भी ग्रह की  दशा हो जब 6 भाव की दशा हो और वो पाप ग्रह हो तो दुर्घटना करवा देता है जैसे की मंगल और केतु हो और वैसे भी मिथुन लग्न में मंगल 6 और 11 भाव का स्वामी होता है जब मिथुन लग्न वालों की दशा जब मंगल की होती है तो उनको चोट दुर्घटना 100% होती है 8 भाव मे जब पाप या क्रूर ग्रह हो तो वो अपनी दशा में चोट आदि दे देते है मारक  भाव के ग्रहों की दशा हो और साढे साती भी लगी हुई हो तो मारक ग्रह की दशा में दुर्घटना देगी गयी है लग्नेश का बलहीन होना या पाप प्रभाव में हो तो भी शारीरिक कष्ट देता है जिस भाव पर एक साथ मंगल और केतु की दृष्टि पड़ती है उस भाव मे चोट लगने के योग बहुत ज्यादा हो जाते है खास कर मंगल और केतु की दशा में कुंडली प्रश्न कुंडली के फलादेश आदि के लिए सम्पर्क करें 



श्री हरि जय सिया राम , 

लग्न  =

   ★★★★★

                     आज बात करते है लग्न लग्नेश की तो हमें यह समझना चाहिए की जो राशि लग्न से 5 और 9 पड़ती है उससे हमारी हमेसा मित्रता रहेगी , यह हमारे लग्न के मित्र होंगे और जो लग्न से जो राशि 6 -8-12 पड़ती है उस जाती वस्तु से हमारी शत्रुता रहेगी , कोई भी ग्रह यदि यदि दशम भाव मे हो उसका प्रभाव लग्न पर पड़ता है यदि वो कोई भी ग्रह शुभ हो तो शुभ फल दायक यदि असूभ हो तो असूभ प्रभाव होता है जो हमारा लग्न होता है उस पर जैसे ग्रहो का प्रभाव होता है वैसे ही हमारी जाती कद आदि होते है क्योंकि लग्न या लग्नेश निज सेल्फ खुद का होता है और लगन के साथ साथ चन्द्र लग्न से भी विचार जरूर करना चाहिए क्योंकि यह भी एक लग्न के अनुसार कार्य करता है यह भी ध्यान रखना चाहिए कोई भी ग्रह जब लग्न में होता है तो वो अपने धातु का पक्का प्रतिनिधि होता है यदि वो असूभ हो तो उस धातु सम्बंदि कष्ट देता है जैसे कि सूर्य लग्न में है तो हड्डियों का पक्का प्रतिनिधि हो जाता है यदि वो पीड़ित हो तो हड्डियों में कष्ट देता है लग्नेश यदि निर्बल होकर किसी भी भाव मे स्तिथ हो तो उस भाव के अंग में कष्ट देता है है जैसे की मंगल लग्नेश होकर कर्क राशि मे नीच का हो तो छाती में कष्ट देता है अब लग्न और लग्नेश हमारे खुद का प्रतिनिधि होता है यदि वो बहुत ही अधिक पाप प्रभाव में होगा तो हमारा स्वभाव में भी विशेष हिंसा की वृत्ति हो जाती है और इसके विपरीत जब लग्न और लग्नेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो स्वभाव सौम्य बनाता है 

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